ये मंंटो की कलम से निकले दस बेहतरीन अफसाने है। उन्हें आप लघुकथा कह लीजीए या माइक्रोफिक्शन, वो किसी भी नाम के मोहताज नहीं। मंटो फिल्म देखी है तब से ये हाल है की वो दिलोदिमाग पर छाए हुए है.. उनके अफसाने अपना असर जमाए हुए है। किरदार जो फिक्शनकी हदों को तोडकर बाहर आते है और आपको छू कर, झकझोरके अपनी मौजूदगीका एह्सास कराते है। वो अफसाने जो परेशान करते है, अखरते है, खटकते है पर उन्हें झुटलाया नहीं जा सक्ता। मंटोने इन्सानी फितरतको पूरा नंगा करके रख दिया है, और मजेकी बात ये की फिरभी आप उसका मजहब नहीं पहचान पाएंगे.. बिलकुल उनके अफसाने ‘इस्लाह’ की तरह जो नौवें नंबर पर पढ सकेंगे।
१. बे-ख़बरी का फ़ायदा
लबलबी दबी…… पिस्तौल से झुँझला कर गोली बाहर निकली। खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया। लबलबी थोड़ी देर के बाद फिर दबी.. दूसरी गोली भनभनाती हुई बाहर निकली। सड़क पर माशकी की मशक फटी। औंधे मुँह गिरा और उस का लहू मशक के पानी में हल हो कर बहने लगा। लबलबी तीसरी बार दबी.. निशाना चूक गया। गोली एक दीवार में जज़्ब हो गई। चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी. वो चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई। पांचीं और छट्टी गोली बेकार हो गई। कोई हलाक हुआ न ज़ख़्मी।
गोलीयां चलाने वाला भुन्ना गया। दफ़्अता सड़क पर एक छोटा सा बच्चा दौड़ता दिखाई दिया। गोलीयां चलाने वाले ने पिस्तौल का मुँह उस तरफ़ मोड़ा।
उस के साथी ने कहा। “ये क्या करते हो”
गोलीयां चलाने वाले ने पूछा “क्यूँ”
“गोलीयां तो ख़त्म हो चुकी हैं”
“तुम ख़ामोश रहो.. इतने से बच्चेको क्या मालूम”
२. स्याह हाशिये
उस आदमी के नाम जिसने अपनी खुरेंजियों का जिक्र करते हुए कहा, ‘जब मैंने एक बुढ़िया को मारा तो मुझे लगा, की मुझसे कत्ल हो गया।’
३. दावते-अमल
आग लगी तो सारा मुहल्ला जल गया, सिर्फ एक दुकान बची है, जिसकी पेशानी पर ये बोर्ड लगा हुआ था, ‘यहां इमारतसाज़ीका सारा सामान मिलता है।’
४.
मरा नहीं यार, देखो अभी जान बाकी है।
रहने दो यार, थक गया हूं।
५. सफ़ाई पसंदी
गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए। खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से क्या पूछा। “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”
एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ीयों ने जवाब दिया, “जी नहीं”
थोड़ी देर के बाद चार नेज़ाबर्दार आए। खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा, “क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा मुर् है?”
उस मुसाफ़िरने जो पहले कुछ कहते कहते रुक गया था जवाब दिया, “जी मालूम नहीं.. आप अंदरर आ के संडास में देख लीजीए।”
नेज़ाबर्दार अंदर दाख़िल हुए। संडास तोड़ा गया तो उस में से एक मुर्ग़ा निकल आया।
एक नेज़ा बर्दार ने कहा, “कर दो हलाल”
दूसरे ने कहा, “नहीं यहां नहीं। डिब्बा ख़राब हो जाएगा.. बाहर ले चलो”
६. सदक़े उसके
मुजरा ख़त्म हुआ, तमाशाई रुख़्सत होगए तो उस्तादी जी ने कहा, “सब कुछ लुटा पुटा कर यहां आए थे लेकिन अल्लाह मियां ने चंद दिनों में ही वारे न्यारे कर दिए।”
७. इस्तिक़लाल
“मैं सिख बनने के लिए हरगिज़ तय्यार नहीं,
..मेरा उस्तुरा वापिस कर दो मुझे।”
८. घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने मिल कर दस बीस लड़कीयों में से एक लड़की चुनी और बयालिस रुपये दे कर उसे ख़रीद लिया। रात गुज़ार कर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा। “तुम्हारा नाम क्या है।”
लड़कीने अपना नाम बताया तो वो भुन्ना गया। “हम से तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हबकी हो।”
लड़कीने जवाब दिया। “उस ने झूठ बोला था।”
ये सुन कर वह दौड़ा दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा, “इस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोका किया है.. हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी.. चलो वापिस कर आएँ।”
९. इस्लाह
“कौन हो तुम?”
“तुम कौन हो?”
“हरहर महादेव.. हरहर महादेव”
“हरहर महादेव”
“सुबूत क्या है?”
“सुबूत.. मेरा नाम धर्मचंद है।”
“ये कोई सुबूत नहीं।”
“चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।”
“हम वेदों को नहीं जानते.. सुबूत दो।”
“क्या?”
“पाएजामा ढीला करो”
“पाएजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया। मार डालो.. मार डालो”
“ठहरो ठहरो.. मैं तुम्हारा भाई हूँ.. भगवान की क़सम तुम्हारा भाई हूँ।”
“तो ये क्या सिलसिला है?”
जिस इलाक़े से आ रहा हूँ वो हमारे दुश्मनों का था इस लिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा.. सिर्फ़ अपनी जान बचाने के लिए.. एक यही चीज़ ग़लत हो गई है। बाक़ी बिल्कुल ठीक हूँ।”
“उड़ा दो ग़लती को।”
ग़लती उड़ा दी गई.. धर्मचंद भी साथ ही उड़ गया।
१०.
“देखो यार। तुम ने ब्लैक मार्केटके दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली।”
બિલિપત્ર
मिट्टी के नीचे दफन सआदत हसन मंटो आज भी यह सोचता है.. की सबसे बड़ा अफसानानिगार वह खुद है या खुदा!
सआदत हसन मंटो, भारत, पाकिस्तान, Manto Microfiction