Daily Archives: October 12, 2018


दस रूपये – सआदत हसन मन्टो

वो गली के उस नुक्कड़ पर छोटी छोटी लड़कीयों के साथ खेल रही थी। और उस की माँ उसे चाली (बड़े मकान जिस में कई मंज़िलें और कई छोटे छोटे कमरे होते हैं) में ढूंढ रही थी। किशोरी को अपनी खोली में बिठा कर और बाहर वाले से काफ़ी चाय लाने के लिए कह कर वह इस चाली की तीनों मंज़िलों में अपनी बेटी को तलाश कर चुकी थी। मगर जाने वो कहाँ मर गई थी। संडास के पास जा कर भी उस ने आवाज़ दी। “ए सरीता… सरीता!” मगर वो तो चाली में थी ही नहीं और जैसा कि उस की माँ समझ रही थी। अब उसे पेचिश की शिकायत भी नहीं थी। दवा पीए बग़ैर उस को आराम आचुका था। और वो बाहर गली के उस नुक्कड़ पर जहां कचरे का ढेर पड़ा रहता है, छोटी छोटी लड़कियों से खेल रही थी और हर क़िस्म के फ़िक्र-ओ-तरद्दुद से आज़ाद थी।