બે ઉર્દુ ગઝલો – ધ્રુવ ભટ્ટ 3


૧.

वो मुजको देख के बोले के शाम ढलती है
मैंने ईमान से कहा की शम्आ जलती है

हर एक नज्म को आफा॒क से गुजरना है
पर हाल पर्ते फरोजाँ बयान करती है

गो मेरे नाम से रोशन जहान हो न सके
ये मेरी जींदगी है मेरे नाम चलती है

ये ईश्क है यहां शागिर्द कौन क्या मूरशिद
ये तो ईक आग है हर नाम फना करती है

वो समंदर है उसे क्या ओ किस तरहा मालूम
कीस नदी कौन से कस्बे से बह निकलती है

न पूछ हाल मेरी हश्मतो-हयाती का
बेनंगो नाम हुं और गफलतें पनपती है

– ध्रुव भट्ट

મુશ્કેલ લાગતા શબ્દોના અર્થ

नज्म – તારો (स्टार)
आफा॒क – ક્ષિતિજ
पर्ते फरोजाँ – પ્રકાશનું કિરણ
हश्मतो-हयाती – પ્રતિભા અને અસ્તિત્વ
बेनंगो नाम – નામ વગરનું, ચરિત્ર વગરનું

૨.

हमसे आईन की उम्मीद कभी मत करना बहरो-बर एक है कहेना तो मेरी फितरत है
में बलागत को भी कभी कूबूल नहीं करता सिर्फ लब्जों में बहर हो ये मेरा मतलब है

अभी में उम्रे बरहना हुं और अजीम नहीं न मेरे नाम से अजमत बयान होती है
मगर ये कोशिशें जूरुर काम आयेगी अर्श-ओ-फर्श खोल के रखना तो मेरी फरहत है

मेरे नग्मो को तु बातिल नहीं बहाल न कर न हो आदिल किसीके लौह-व-कलम लब्जों का
उनका आगाज ही कुछ ईस तरह से होता है जैसे हर शय में ईक आहंग कि सी हरकत है

मुजे कोई भी मसिहा का ईन्तजार नहीं मेरे ला-ईल्म करिश्मों का कोई दीन कहां
में तो मद्देनजर मफहूम ढूंढ लेता हुं तजस्सुस बाद की तहरीर मेरी नकहत है

में तो कतरा हुं झूएबार की तलाशों का मुझे पामाली औ पाबंदगी का खौफ नहीं
मुझे भी कौसे कहर ईस कदर पूकारेगा बीस तरहा कहकशाँ में नकशे-पा-ए-नूदरत है

निहाँ नहीं है मेरी नूत्के-अदब से उल्फत में नहीं नक्स से परदा-नकाब करता हं
नौ-ब-नौ हुं औ नजाकत से पेश आता हुं हर एक लम्हे का लिहाज मेरी निसबत है

– ध्रुव भट्ट

મુશ્કેલ લાગતા શબ્દોના અર્થ

आईन – નિયમ, સંવિધાન
बहरो-बर – સમુદ્ર અને ધરતી
बलागत – આલંકારીક શૈલી, વ્યાખ્યાન પટુતા
बहर – શેરનું વજન
बरहना – વસ્ત્રહીન રહી શકાય તેવડી વય
अजीम – પ્રતિષ્ઠિત
अजमत – શાન, મહાનતા
अर्श-ओ-फर्श – આકાશ અને ધરતી
फरहत – મોજ, આનંદ
बातिल – રદ્દ
बहाल – પુનઃસ્થાપિત
आदिल – ન્યાયાધીશ
लौह-व-कलम – રહસ્ય છત્તું કરતી તક્તી અને તે છતું કરનારી કલમ
आहंग – લય – ધ્વનિ
ला-ईल्म – અભણ
दीन – ધર્મ
मद्देनजर – નજર સમક્ષ
मफहूम – અર્થ
तजस्सुस – જિજ્ઞાશા શોધખોળ
तहरीर – લખાણ, લેખ
कतरा – ટીપું
झूएबार – ઝરણું
पामाली – પગતળે કચરાવું
कहर – ઈન્દ્રધનુષ
कहकशाँ – આકાશગંગા
नकशे-पा-ए-नूदरत – વિચિત્રતા અથવા અપૂર્ણતાના પદચિહ્ન
निहाँ – છુપાયેલું
नूत्के-अदब – વાણી, બોલી પ્રત્યેનો આદર
नक्स – ખામી, ત્રુટી
नौ-ब-नौ – સાવ નવું, તાજું

શ્રી ધ્રુવ ભટ્ટ સાહેબ આપણી ભાષાના આગવા લેખક છે, તેમની નવલકથાઓથી અજાણ વાચક શોધવો અઘરો છે, તો સાથે સાથે તેમના ગીતો પણ મનમાં ગૂંજારવ પ્રેરતા રહે છે. તેમની નવલકથાઓ સમુદ્રાન્તિકે, તત્વમસી, અતરાપી, અકૂપાર, કર્ણલોક, અગ્નિકન્યા હોય કે તેમના ગીતોનો સંચય ‘ગાય તેના ગીત’, લેખન પ્રત્યેની આગવી સૂઝ, ઉંડાણ અને નિરાળી પદ્ધતિ તેમની વિશેષતાઓ રહી છે. આજે એ બધાથી કાંઈક અલગ એવી બે ઉર્દુ ગઝલો તેમણે અક્ષરનાદને પાઠવી છે. આશા છે આ નવા પદાર્પણમાં પણ તેઓ સદાની જેમ શ્રેષ્ઠ અને અનોખું આપશે. અક્ષરનાદને આ કૃતિઓ પ્રસિદ્ધ કરવાની તક આપવા બદલ તેમનો ખૂબ ખૂબ આભાર.


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3 thoughts on “બે ઉર્દુ ગઝલો – ધ્રુવ ભટ્ટ

  • Mohammed Saeed Shaikh

    बहुत खूब…. लेकिन बहुत मुश्किल….
    लब्जो नहीं लफ्ज़ो होना चाहिये .
    चोथे शेर में नकहत लिखा है असल शब्द होता है निकहत यानी खुश्बू….
    पांचवे शेर में बीस तरह लिखा है ….. यूँ होना चाहिये …. जिस तरह कहकशां में ….
    आखरी शेर में नक़ाब करता हं लिखा है ….. नक़ाब करता हूँ होना चाहिये …
    आखरी शेर में ही मेरी निसबत है के बदले फितरत है लिखा होता तो शेर का मानी और अच्छा हो जाता…

  • sapana

    बहोतह मुश्कील लगी येह गज़ले! वैसे बहोत ही नये लब्ज़ जानन्को मिले…उनकी गुज़राती गज़ल बहोत ही आसान लब्ज़ोमे है…
    सपना